भ्रष्टाचार के बारे में आजकल बहुत चर्चा हो रही है . ये जानकार और भी अच्छा लगता है कि भ्रष्टाचार के प्रति लोग अपनी नारज़गी जमकर प्रदर्शित कर हैं. वास्तव में ईमानदार और हर तरह से निर्दोष लोगों को तो शायद ये उम्मीद भी होगी कि अब भ्रष्टाचारियों की ख़ैर नहीं.
लेकिन सवाल फ़िर वही कि क्या किसी तरीके से भ्रष्टाचार रुक सकता है? चलिए इस सवाल के उत्तर की तलाश करते हैं.
हाल ही में हुए एक सर्वे में जो तथ्य सामने आए हैं उनका यदि गौर से अध्ययन किया जाए तो ज़ेहन में कुछ ऐसे सवाल आते हैं जिनका उत्तर तलाशना बिल्कुल भी आसान नहीं है. सर्वे में एक तथ्य यह भी है कि भारत के ५४ प्रतिशत लोगों ने अपना काम करवाने के लिए कभी न कभी रिश्वत ज़रूर दी है. यानि हर दूसरा भारतीय भ्रष्ट है. ये ५४ प्रतिशत लोग वो हैं जिन्होंने बड़े प्यार से इस बात को स्वीकार किया है. ज़ाहिर है इनमें से अधिकांश ऐसे भी होंगे जिन्होंने अपना काम करवाने के लिए पैसे दिए हैं तो मौक़ा मिलने पर दूसरों से पैसे लिए भी होंगे.
मैं इसी बात को आगे बढ़ाते हुए ये कहना चाहता हूँ कि एक तरफ़ तो हम भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ इतना हल्ला मचाते हैं दूसरी तरफ़ मौक़ा मिलने पर ख़ुद भी भ्रष्टाचार के गंदे नाले में बड़े मज़े से डुबकी लगाते है बशर्ते इससे हमारा काम बनता हो! यही नहीं सार्वजनिक स्तर पर हर आपराधिक मामले में हमारी प्रतिक्रिया या आलोचना का शिकार दूसरा अपराधी होता है, वो अपराधी नहीं होता जो कि अपना है. चाहे उसने घूस ली हो या दी हो या फ़िर किसी का बलात्कार ही क्यों न कर दिया हो. क्या इस बात से आपको कुछ भी आश्चर्य नहीं होता कि केवल राजधानी दिल्ली में ही रोज़ एक बलात्कार की घटना होती है. पूरे देश में बलात्कार के मामलों का कोई हिसाब है नहीं. देश भर में रोज़ न जाने कितनी हत्या और न जाने कितनी ही भ्रष्टाचार की घटनाएँ होती होंगी. हर तरह के अपराध बार-बार होते होंगे. और जो अपराधी इन बलात्कार, हत्या, भ्रष्टाचार की घटनाओं और दूसरे कई अपराधों को अंज़ाम देते होंगे उन अपराधियों के बारे में अधिकांश मामलों में उनके घरवालों , निकट संबधियों, चश्मदीदों या फ़िर अपराध करने वालों के कुछ दोस्तों को ज़रूर पता होता होगा. लेकिन शायद ही कभी ऐसा होता कि कोई माँ, बाप ,भाई, बेटा, बहन, दोस्त या रिश्तेदार आगे आ कर ये बताएँ कि मेरे माँ, बाप ,भाई, बेटा, बहन, दोस्त या रिश्तेदार ने ये ग़लत काम किया है इसलिए इसे सज़ा दो. हालंकि कुछ मामलों में रिश्तेदार या दोस्त तो सामने आ भी जाते हैं लेकिन ख़ून के रश्ते वाले तब तक सामने नहीं आते जब तक कि बे ख़ुद अपराधी के शिकार न हों. भ्रष्टाचार के मामलों में भी ठीक यही होता है. कभी कोई ये नहीं कहता कि मेरे बेटे या बाप ने रिश्वत ली है.
हालांकि मेरा तो ये भी मानना है कि जो लोग जिस काम का सरकार से पैसा लेते हैं अगर वो उस काम को सही से न करें या ड्यूटी के समय ख़ाली बैठे या ५ पैसे की भी सरकारी चीज़ बिना अनुमति के घर ले जाएँ या किसी भी तरीके से अपने पद का दुरूपयोग करें तो वो लोग भी भ्रष्ट हैं. भले ही वो घूस न लेते हों. इस हिसाब से देखा जाए तो हिन्दुस्तान में बहुत कम लोग ईमानदार होंगे.
मैं सिर्फ़ ये कहना चाहता हूँ कि जब तक हमारा ज़मीर नहीं जागेगा, ईमानदारी, कर्तव्य परायणता और नैतिकता जैसे बुनियादी मूल्यों को हम अपने जीवन में नहीं उतारेंगे तब तक किसी भी अपराध को सिर्फ़ क़ानून के दम पर रोकना लगभग असंभव है. अगर आपको ये बाते बोर करती हों तो वादा कीजिए कि आप कभी भी भ्रष्टाचार या किसी भी अपराध को लेकर कभी किसी को न तो कोसेंगे और न ही उससे अच्छा या ईमानदार इंसान बनने को कहेंगे. एक भ्रष्ट व्यक्ति या अपराधी दूसरे भ्रष्ट व्यक्ति या अपराधी से ये कहे कि तू ईमानदार और अच्छा इंसान बनकर रह तो इससे बड़ी हास्यास्पद बात क्या होगी? और आप देख सकते हैं कि हमारे देश में कुछ ऐसा ही हो रहा है. ये तय है कि इसका परिणाम कुछ भी नहीं निकलेगा. क्योंकि जो कोई भी भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ अपनी आवाज़ उठा रहा है उनमें से ज़्यादातर किसी न किसी रूप में ख़ुद भी भ्रष्ट या दोषी हैं. वो चाहे मीडिया वाले हों, नेता हों या फ़िर आम जनता ! दूसरे शब्दों में कहें तो भ्रष्टाचार की गुत्थी हम सब मिलकर सुलझा सकते हैं!
अपील-
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बहुत जरुरी आलेख हमारी आँखें खोलने में सक्षम
ReplyDeleteजब तक हमारा ज़मीर नहीं जागेगा! ऐसा ही होगा।
ReplyDeleteयह सच है वीरेन्द्र की जब अच्छे और सच्चे मुद्दों पर बात होती है तो हमें बोर लगती है.... पर जब भी मौका मिले हम कोसना नहीं छोड़ते...... शुरुआत खुद से ही करनी होगी..... ऐसा हर नागरिक को सोचना है.....सार्थक आलेख
ReplyDeleteअच्छा सुंदर लेख सोचने को विवश करती बाते
ReplyDeleteइस बार मेरे ब्लॉग में SMS की दुनिया ............
मैं सिर्फ़ ये कहना चाहता हूँ कि जब तक हमारा ज़मीर नहीं जागेगा, ईमानदारी, कर्तव्य परायणता और नैतिकता जैसे बुनियादी मूल्यों को हम अपने जीवन में नहीं उतारेंगे तब तक किसी भी अपराध को सिर्फ़ क़ानून के दम पर रोकना लगभग असंभव है..
ReplyDeleteबिलकुल सही कहा ..यहाँ तो इमानदारी तब तक ही रहती है जब तक बेईमानी का मौका न मिले ..
तीसरी आँख ना होती, न जान पाते हम|
ReplyDeleteये खुली तब कहीं जा कर, गहन सवाल दिखे||
आपने आज के सबसे ज्वलंत मुद्दे पर कलम आज़माइश की है| बधाई|
भ्रष्टाचार चरम पर है अपने देश में. अब घूस लेने वालों ने अपनी बचत के लिए ये कहना शुरू कर दिया है कि घूस देने वाला दोषी है लेने वाला नहीं. भला कौन समझाए इन लोगों को कि कौन अपना पैसा बेकार में किसी को देना चाहेगा. अरे भाई,देने वाला तो लेने वालों के आगे लाचार है बेचारा,क्योंकि अगर वो रिश्वत नहीं देता तो लेने वाला उसका काम ही नहीं करता. यहाँ वीरेंद्र भाई ने भी घूस लेने वालों को clean chit दे दी और देने वालों को दोषी करार दे दिया, ऐसे तो हो चुका इस बीमारी का इलाज. प्रकृति इसका कुछ न कुछ इलाज ज़रूर निकलेगी एक दिन
ReplyDeleteकिसी का बड़ा प्यारा शेर है:-
सफाई किसकी करनी चाहिए क्या साफ करते हैं,
है कचरा आँख में लेकिन वो चश्मा साफ करते हैं
bahut hi gambheer mudde ko utha kar acchha lekh prastut kiya hai.
ReplyDeletethis is true that more than 50% of us are corrupt....corruption is so much into the veins of society that it is practically impossible to eradicate it or lessen it....the only thing which can be done is to stop it frm getting worse!!!......aajkal log sahi kaam karne ke liye bhi paise mangte hain....kahan tak aur kis kis ko rokenge.....as you said....self-realisation is the only solution.....but do you think zameer kabhi jaagega???
ReplyDeleteविचारपूर्ण आलेख!
ReplyDeleteउपयोगी जानकारी देने के लिए शुक्रिया!
ReplyDeleteभ्रष्टाचार के बारे में आज चारों तरफ हो-हल्ला है, सभी कोइ इसकी बात कर रहा है और आम जन दिग्भ्रमित है...... भ्रष्टाचार क्यों है यही प्रश्न लोगो को परेशां कर रहा है जबकि हमें इसके मूल में जाना चाहिए........आजादी के साठ वर्ष बाद भी आरक्षण क्यों है ?...... एक अनपढ़ या कम पढ़ा लिखा कैसे लोकतंत्र के नाम पर सत्ता शीर्ष पर पहुँच जाता है ?.......उम्र के आखिरी पड़ाव पर या विकलांग होने पर भी कैसे ये देशसेवा (?) कर लेते हैं ?........आम स्कूलों पर स्टार स्कूल क्यों हावी हैं ?........जनसँख्या वृद्धि पर क्यों नहीं कोई नेता या दल मुहीम छेड़ता है ?........ न्यायालयों में न्याय क्यों नहीं मिलता या मिलता भी है तो बहुत देर बाद ?........ जब तक ये प्रश्न अनुत्तरिय रहेंगे तब तक भ्रष्टाचार को रोक पाना मुश्किल होगा.........
ReplyDelete...
बहुत कठिन कम है वीरेंद्र जी ..यहाँ तो कूप में ही भांग पड़ी है.पानी पिए तो कहाँ से.पहले हमें खुद को सुधारना होगा...तब जाकर ये बीमारी ख़तम हो पायेगी ...सुन्दर आलेख के लिए दिल से धन्यवाद
ReplyDeleteभ्रष्टाचार का विद्रूप चेहरा सामने है। जडें गहरी हैं। बिमारी पुरानी है। इलाज करने वाले कम हैं । क्यूंकि अब ये भ्रष्टाचार खून में रच-बस गया है।
ReplyDeleteएक भ्रष्ट व्यक्ति या अपराधी दूसरे भ्रष्ट व्यक्ति या अपराधी से ये कहे कि तू ईमानदार और अच्छा इंसान बनकर रह तो इससे बड़ी हास्यास्पद बात क्या होगी? और आप देख सकते हैं कि हमारे देश में कुछ ऐसा ही हो रहा है.
ReplyDelete.....बिलकुल सही बात ऐसा ही देखने में मिलता है हर जगह ...क्या कहें
...बहुत कठिन है राह पनघट की .........
very nice...
ReplyDeletemere blog par bhi sawagat hai..
Lyrics Mantra
thankyou
समसामयिक विषय पर व्यवहारिक चिन्तन ।
ReplyDeleteउपयोगी पोस्ट ।
विरेन्द्र सिंह चौहान जी
ReplyDeleteनमस्कार !
आपकी अपील ने लेख पुनः ध्यान से पढ़ने को विवश किया ।
… और सही कह रहा हूं कि अन्य ब्लॉगर मित्रों ने क्या कहा , यह देखने का प्रयत्न भी नहीं किया :)
जब तक हमारा ज़मीर नहीं जागेगा! पढ़ कर बहुत छ्टपटाहट महसूस हुई … वो यूं कि हाय रे इंसान की मज़बूरियां … ! परिस्थितियां वश में नहीं भाई !
हालांकि, साधारण और सात्विक तथा संतोषी होने के कारण निजी रूप से मेरे परिवार के समक्ष सर्वत्र विराजमान भ्रष्टाचार अथवा आपराधिक प्रवृतियां कभी धर्मसंकट की स्थिति उत्पन्न नहीं करतीं … लेकिन किसी न किसी कारण अंशतः ऐसी स्थिति आई अवश्य है जब मूक समर्थन करना ही पड़ा है भ्रष्टाचार का ।
… और तब हाय रे इंसान की मज़बूरियां … ! स्वतः मुंह से निकल जाता है …
आप-हम जैसे मिल कर और एकाकी प्रयत्न से लक्ष्य-प्राप्ति के लिए लगे रहें … बस । बाकी भगवान भरोसे ही है ।
सार्थक, उपयोगी और विचारोत्तेजक आलेख के लिए साधुवाद !
शुभकामनाओं सहित
राजेन्द्र स्वर्णकार
ऐसा है आपने मुद्दा तो सही उठाया है ... और विश्लेषण भी बढ़िया तरीके से किया है ... पर इस लेख ने एक और सवाल खड़ा कर दिया है ... वो यह है कि आजादी के ६० साल बाद भी हमारा ज़मीर ६ फूट ज़मीन के अंदर क्यूँ दफनाया हुआ है ... वो कौन सी बातें/कारण है जिससे हम में वो हिम्मत और सच्चाई नहीं आ पाती है जो हम अक्सर पाश्चात्य समाज में देख पाते हैं (हाँ वही पाश्चात्य समाज जिन्हें हम हर बात पे गाली देते रहते हैं) ... हमारे देश में कोई असान्जे पैदा क्यूँ नहीं होता है ?
ReplyDeleteचौहान जी
ReplyDeleteनमस्कार !
उपयोगी जानकारी देने के लिए शुक्रिया!
"माफ़ी"--बहुत दिनों से आपकी पोस्ट न पढ पाने के लिए ...
नव वर्ष मुबारक
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