मुसीबतों का डटकर सामना कीजिए..
कभी-कभी सोचता हूं कि हमारी सारी मुसीबतें दूर हो जाए तो क्या होगा? आप सोच रहे होंगे कि फिर तो मजे ही मजे हैं। अरे नहीं भाई! बिना मुसीबतों का जीवन भी कोई जीवन है, मुसीबतें तो भोजन में नमक, मिर्च, घी और अन्य पौष्टिक तत्वों की तरह हैं! जिस भोजन में ये सब न हों वो भोजन किसी काम का नहीं। बेस्वाद और बेकार।इसी तरह यदि जीवन में थोड़ी बहुत मुसीबतें न हो तो जीने का मजा ही किरकिरा हो जाता है। जीवन बेकार और बेस्वाद हो जाता है। इसलिए जब भी हमारा जीवन ठीक-ठाक पटरी पर दौड़ रहा होता है तो कोई न कोई मुसीबत टपक ही पड़ती है जीवन को बेकार होने से बचाने के लिए! और अगर न भी आएं तो हम मुसीबतों का हाथ पकड़ कर ले आते हैं या उन्हें न्योता देते हैं कि भई आ जाओ! आपके बिना कुछ अच्छा नहीं लग रहा है! सच तो ये है कि अगर मुसीबतें न हो तो विकास नाम का शब्द अप्रसांगिक हो जाएगा। अरे भई! जब मुसीबतें ही नहीं होंगी तो उनका समाधान कैसे ढूंढोंगे? और जब समाधान की प्रक्रिया थम जाएगी तो विकास कहां से होगा?
घर में खाली बैठे नौजवान लड़के-लड़कियों को अगर मां-बाप टोकना बंद कर दें, आराम से उनकी ज़रूरतें पूरी करते रहें या उन्हें कभी किसी मुसीबत का सामना न करने दें तो ऐसे लड़के-लड़कियां अपने जीवन में शायद ही कभी कुछ कर पाएं। इसलिए आमतौर पर मां-बाप ऐसा करते नहीं। होता यह है कि जैसे ही मां-बाप को लगने लगता है कि उनके जवान बेटे-बेटियां ज़िम्मेदारी से भाग रहे हैं , कुछ बनने की दिशा में आगे नहीं जा रहे या काम से जी चुरा रहे हैं तो वे उनको टोकते हैं, उन्हें कुछ कर गुजरने की प्रेरणा देते हैं। दूसरे शब्दों में कहें तो वे उन्हें मुसीबतों का सामना करने के लिए तैयार करते हैं क्योंकि आप जब कुछ करेंगे तो मुसीबतें तो आएंगी ही और बिना मुसीबतों का सामना किए बिना आप कुछ बन नहीं पाओगे।
विश्व की तमाम छोटी- बड़ी कंपनियां अपने यहां उच्च पदों पर लोगों को भर्ती करते समय अनुभवी लोगों को तरजीह देती हैं। वजह साफ है। अनुभवी लोगों ने कई तरह की मुसीबतों को झेला है। ऐसा करते वक्त उन्होंने अमूल्य दक्षता या कौशल हासिल किया है जिसका लाभ ये कंपनियां लेती हैं। उन्हें मुंह-मांगा वेतन देती हैं। उनकी सुख-सुविधाओं का ख्याल रखती हैं।
कहना यही है कि सारी मुसीबतें ख़त्म होने के सपने देखने का मतलब है कि बेवजह जीने की चाह रखना और मेरा मानना है कि सामान्य समझ रखने वाला कोई भी व्यक्ति बेवजह जीना पसंद नहीं करेगा।
निष्कर्ष ये निकलता है कि मुसीबतों का स्वागत कीजिए। उनसे निपटते रहिए और जीवन का आनंद लेते हुए आगे बढ़ते रहिए। यही जीवन है!
बहुत प्रेरणादायक आलेख, वीरेंद्र भाई।
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