पीएम मोदी के 'रोने' पर मायावती
जी ने चुटकी ले है। वैसे इरादा जान लेने का था!
'मेक इन इंडिया' में बहुत से लोग अपना योगदान कुछ इस
तरह से भी दे रहे हैं कि वे जिसे चाहते हैं उसे 'भक्त' बना
देते हैं!
वो जमाना गया जब 60-70 साल
की ज़िंदगी भी इंसान को काफी लगती थी। आजकल तो इतने साल फेसबुक और व्हाट्स अप पर
वी़डियो देखने में ही निकल जाते हैं।
ठहाके लगाने के लिए चुटकुले पढ़ना कतई
जरूरी नहीं है। आप चाहें तो केजरीवाल जी
के ट्वीट भी पढ़ सकते हैं।
के ट्वीट भी पढ़ सकते हैं।
एक हिसाब से मोदी जी कुछ भी न करे तो
भी चलेगा क्योंकि 'भक्त' तब भी उनकी प्रशंसा ही करेंगे और विरोधी तो करने पर भी यही कहते
हैं कि पीएम कुछ नहीं करते!
इंसानों की ज़हर उगलने की क़ाबिलियत को
देखते हुए ज़हर उगलने वाले बाकी जीवों को स्वेच्छा से विलुप्त हो जाना चाहिए!
'स्वच्छ भारत अभियान' की तरह ही 'स्वस्थ
खानपान अभियान' भी बेहद जरूरी है! हर नुक्कड़ पर मिलने वाली दूषित भोजन
सामाग्री व ग़लत खानपान की आदतें भी पाकिस्तान जितनी ही ख़तरनाक हैं!
प्रधानमंत्री आवास वाली रेस कोर्स रोड
का नया नाम 'लोक कल्याण मार्ग' है। नये नाम से ऐसी फील आती है जैसे
ये नाम "कांग्रेस कल्याण मार्ग" से प्रेरित हो!
जब घमंड आ जाता है तो बाकी चीजें आना
स्वत: ही बंद हो जाती हैं!
एक महीने की वैधता के साथ 100-200 एमबी
डेटा देना ऐसा ही है जैसे किसी बच्चे को बिस्किट का एक पैकिट देकर कह दिया जाए कि
जाओ बेटा महीने भर इसी से काम चलाओ!
"दुनिया की कोई ताकत हमसे कश्मीर नहीं छीन सकती", चंद
शब्दों का ये डायलॉग पाकिस्तानियों के लिए 'मिर्ची बम' का
काम करता है।
लोग नाहक ही राजनीति को बदनाम करते
हैं। ये तो वो पेशा जिसमें बंदा आख़िरी सांस तक भी पीएम-सीएम बनने के चांस रखता है!
एक के बाद एक बड़ा विवाद पैदा करना ऐसा
ही है जैसे देश के विकास की राह में पाकिस्तान छोड़ दिया हो!
एक समय था जब बिहार के भाईयों को
काम-धंधे की तलाश में दूसरे राज्यों का रुख करना पड़ता था। आज समय बदल गया है अब
शराब के लिए करना पड़ता है!
भारत इकलौता ऐसा देश है जहां बड़ीं
संख्या में ऐसे लोग रहते हैं जो स्वयं तो बेवकूफ बन जाते हैं लेकिन बेवकूफ बनाने
वाले को हीरो बना देते हैं!
कहा जा रहा है कि इकॉनमी की सुधार की
रफ्तार धीमी पड़ गई है! इसका कुछ श्रेय उन लोगों को भी दिया जाना चाहिए जो संसद
नहीं चलने देते!
रजत शर्मा जी की 'आप की
अदालत' एकमात्र ऐसी अदालत है जहां मुकदमा किसी पर भी चले उसका बाइज्जत
बरी होना तय है!
स्मार्टफोन की कीमत पचास हजार भी हो, तब भी
प्रचार करने वाला उसे 'सस्ता' बताकर, मेरे जैसों को
ग़रीब होने का अहसास करा ही देता है!
कितनी दिलचस्प बात है कि इंसान सुबह से लेकर शाम तक कई मतर्बा बेवकूफ बनने के बाद भी अपने आप को ही दुनिया का सबसे ज्यादा अक्लमंद समझता है।
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" सोमवार 28 नवम्बर 2016 को लिंक की गई है.... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteयशोदा जी आपका धन्यवाद। आभार।
Deleteबहुत खूब !!
ReplyDeleteमतलब फिल्म वही शीर्षक बदल जाता है ..
ReplyDeleteबहुत खूब ..
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