श्रीमतीजी से मिली सामान की लिस्ट को कमीज की जेब के हवाले करते हुए जैसे ही मैं चलने को हुआ तो हमेशा की तरह बाज़ार से जल्दी लौट आने की सख्त हिदायत मिली! वैसे मन तो था कि कि एक कप कड़क चाय मिल जाती। पर कहने की हिम्मत न हुई! लिहाजा चाय की बजाय श्रीमती जी के कड़क आदेश का कसैला घूँट पीकर मैंने बाजार का रुख किया। थोड़ी दूर चलने पर सामने से 'छैला बाबू' आता दिखाई दिया। बढ़िया कपड़े पहनने के शौकीन छैला बाबू की हर एक अदा शानदार, जानदार और दमदार थी! बड़ी मुश्किल से 10वीं पास की थी लेकिन उसे इस बात का बिल्कुल भी गुरूर नहीं था! घर में उसकी माँ थी। एक बड़ा भाई था जो शादी के बाद किसी और शहर में बस गया था। करीब 34-35 की उम्र बाले 'छैला बाबू' का वास्तविक नाम कुछ और ही था। लेकिन उसके स्टाइल के दीवानों ने उसका नाम 'छैला बाबू' रखा था। मुझे भी वो हर तरह से 'छैला बाबू' ही नजर आता था। छैला बाबू के पास कोई नियमित काम नहीं था। इतना काम जरूर मिल जाता था जिससे कपड़े-लत्ते की जरूरतें पूरी हो जाती थीं! शायद इसलिए उसे नाम के मुताबिक इज्ज़त नहीं मिलती थी! बेरोजगारी की वजह से अब तक उसकी शादी भी नहीं हुई थी जिसका दर्द कभी-कभी वो मुझसे बयां करता था और मैं तसल्ली देता कि देर-सवेर उसकी शादी जरूर होगी।
आज वो कुछ ज्यादा ही उदास दिखाई दे रहा था! उसे देखकर ऐसा लगता था कि जैसे किसी ने उसे बोरे में बंदकर अच्छे से कूट दिया हो और उस दुर्घटना का विस्तृत ब्यौरा सबसे पहले वो मुझे सुनाना चाहता था! अक्सर होता भी यही था! वो अपने कष्टों के निवारण के संबंध में मुझसे चर्चा करता था और मुझे अहसास कराता रहता था कि अक्ल का थोड़ा सा खजाना मेरे पास भी है! वरना मेरी पत्नी ने तो शादी के पहले ही दिन मेरी बौद्धिक हैसियत पर जो बड़ा सा प्रश्नचिन्ह लगाया था वो शादी के 10 के सालों बाद भी ऐसे ही कुछ क़ायम है!
खैर.. 'छैला बाबू' के लटके हुए मुँह पर मिलियन डॉलर की स्माइल तभी लाई जा सकती थी जब पता चलता कि उसकी समस्या क्या थी? मैंने उससे उसकी इस उदासी का कारण जानना चाहा। उसने जैसे ही नज़र उठाई तो लगा कि जैसे यह अब रोया कि तब रोया! छैला बाबू को टीवी सीरियल 'तारक मेहता का उल्टा चश्मा' का 'जेठालाल' और खुद को 'तारक मेहता' समझकर मैंने प्यार से पूछा कि छैला बाबू कुछ कहो भी! आख़िर तुम्हें क्या ग़म है?
भर्राई आवाज में वो कहने लगा, "आप भी मज़ाक कर रहे हों! अरे आपसे हमारी परेशानी छुपी थोड़े ही है!"
उसकी बात सुनकर लगा कि दुख कोई पुराना ही है जो शायद मुझे भी पता है। फिर मुझे कुछ याद आया।
'कहीं तुम अपनी शादी के चक्कर में तो परेशान नहीं हो रहे हो?' हैरानी जताते हुए मैंने छैला बाबू से से पूछा!
'और नहीं तो क्या? अरे मेरे साथ के सभी लड़कों के ब्याह हो लिए! किसी के एक तो किसी के दो बच्चे भी हो गए। और एक मैं हूं जो अब तक अकेला हूँ। आख़िर कब होगा मेरा ब्याह?'
छैला बाबू की बात सुनकर मुझे अहसास हुआ कि अपनी ग़लती सुधार लूँ! यह करैक्टर 'जेठालाल' से नहीं बल्कि इसी सीरियल के दूसरे करैक्टर वरिष्ठ पत्रकार 'पोपटलाल' से मिलता था! मैं पहले भी उसे बहुत बार दिलासा दे चुका था। लेकिन आज ऐसा लगता था कि केवल दिलासे से काम न चलेगा! इसके दुख को कम करने के लिए कुछ अतिरिक्त प्रयास करना पड़ेगा। लेकिन इसमें वक्त लग सकता था और यही मेरे पास नहीं था। घर जल्दी वापस जाने का प्रेशर इतना अधिक था कि मैं चाहकर भी 2-4 मिनट अतिरिक्त खर्च नहीं कर सकता था! आख़िर पैसों के साथ-साथ समय का भी हिसाब जो रखना पड़ता था!
मैं शादीशुदा हूँ। यह सोचकर मुझे ग़ुस्सा आने लगा था। ये भी कोई ज़िंदगी है बंधु? मैंने मन ही मन अपने आपको कायदे से धिक्कारा! इससे अच्छा तो कुँवारा ही भला था! पता नहीं कौन सी घड़ी में शादी के लिए हाँ बोला था जो आज तक भुगत रहा हूँ! यह भी एक संयोग ही था कि छैला बाबू इसलिए दुखी था क्योंकि उसकी शादी नहीं हो रही थी और मैं इसलिए दुखी था क्योंकि मेरी शादी हो गई थी।
तभी अचानक मेरे दिमाग की बत्ती जल गई! मुझे विश्वास होने लगा कि आज मैं देवदास बने 'छैला बाबू' के चेहरे पर एक बार फिर से मुस्कराहट ला सकता हूँ!
मैंने बड़े प्यार से पूछा, "दुखीराम.....मेरा मतलब मिस्टर छैला बाबू! एक बात बताओ? तुम सुबह से लेकर शाम तक क्या करते हो?"
'कुछ खास नहीं! बस ऐसे ही टाइम पास करता हूँ। जो मन करता है वो कर लेता हूं! बढ़िया से बढ़िया कपड़े पहनता हूँ। कुछ काम मिल जाता है तो कर लेता हूँ नहीं तो इधर-उधर घूम लेता हूँ। जब शादी नहीं होने का ख्याल आता है तो रो भी लेता हूँ! सच कह रहा हूँ अब अकेले मन नहीं लगता!' छैला बाबू ने बड़ी मायूसी से मेरी तरफ देखते हुए कहा!
'तो तुम्हारे दुखों की असली जड़ तुम्हारी शादी का न होना है?' मैंने पूछा! 'छैला बाबू तुम अविवाहित होकर दुखी हो और मेरे जैसे लोग विवाहित होकर दुखी हैं! क्या तुम वजह नहीं जानना चाहोगे?' मैंने फिर पूछा।
दुखीराम बोला, "क्या बात कर रहे हैंं आप भी? भला शादी के बाद अगर थोड़ी बहुत-दिक्कत होती भी तो इसमें कौन बड़ी बात है? शादी के फायदे भी तो बताओ? आपकी शादी हो गई है न !इसलिए ऐसा कह रहे हैं आप! जरा मेरे जैसे लोगों से पूछिए कि शादी न हो तो दिल पर क्या बीतती है?" दुखीराम ने उलाहना देते हुए अपनी पीड़ा व्यक्त की!
'मैं तो इस उम्मीद में आपके पास चला आता हूँ कि कहीं आपकी जान-पहचान में कोई हो जिनके विवाह योग्य कन्या हो तो कृपया उन्हें मेरा परिचय जरूर दें!' उसने उम्मीद भरी नज़रों से देखते हुए मुझसे कहा!
'परिचय और तुम्हारा?' मैंने हैरानी से कहा! 'अरे बेकार हो तुम! ऊपर से बेरोजगार हो! न कोई नौकरी न कोई ढंग का धंधा। घर के नाम पर एक पुराना सा पुश्तैनी मकान जिस पर तुम पिछले कितने सालों से रंग-रोगन भी न करा सके! उसकी मरम्मत कराना तो दूर की बात है! हाँ बन-ठन कर रहने में तुम्हारा कोई जवाब नहीं! जो थोड़ा-बहुत कमाते हो उसे ऐसे ही ख़र्च कर देते हो! लोगों की नजरों में 'छैला बाबू' बनने की बजाय अगर 'कमाऊ बाबू' बनते तो शायद अब तक तुम्हारी भी बारात चढ़ गई होती!'
'इस पर तुम अपने परिचय की बात कर रहे हो!' मैंने थोड़ी नाराज़गी जाहिर करते हुए उसको आईना दिखाना चाहा! छैला बाबू कड़वे सच वाली इस बेहद कड़वी गोली को निगल तो गया लेकिन इसे बर्दाश्त नहीं कर पा रहा था!
मुझे एक बार फिर से उससे हमदर्दी हो आई । मैं जानता था कि शादी का लड्डू होता ही ऐसा है कि जब तक खाने को नहीं मिले मन मचलता ही रहता है। एक बार जिसने यह लड्डू खा लिया तो फिर उससे पूछो कि स्वाद कैसा था? अब मैंने तो यह लड्डू खा रखा था इसलिए जानता था कि लड़्डू खाना जितना आसान है उसे पचाना उतना ही मुश्किल है। इसके साइड इफैक्ट इतने ज्यादा है कि बताना मुश्किल है! लेकिन यह बात छैला बाबू समझने को तैयार नहीं था! अगर छैला बाबू यह बात समझ जाए तो उसकी समस्या का समाधान हो जाए और मैं भी जल्दी से अपने काम को जाऊँ! उसे यूँ ही दुखी छो़ड़कर जाने को मेरा भी मन नहीं था। लिहाजा फिर से कोशिश शुरू की!
मैंने कहा, "भैया छैला बाबू मेरा मन तो बहुत है कि मैं कुछ देर और रुक कर तुम्हारी समस्या का उचित समाधान करता! लेकिन देखो तुम्हारी भाभी का आदेश है कि मैं बाजार से सामान खरीदकर जल्द से जल्द वापस घर चला आऊँ! अब मेरे नसीब में वो सुख तो रहा नहीं जो तुम्हारे जैसे कुँआरे लड़कों के पास होता है!" छैला बाबू को लक्ष्य कर मैंने अपनी घोर निराशा का तीर चला दिया। जिसका थो़ड़ा असर हुआ! मेरे लिए इतना काफी था!
'कुँआरों के पास ऐसा कौन सा सुख होता है जिसकी आपको इतनी कसक हो रही है?' उसने हैरानी से पूछा!
इस वार्तालाप में मुझे इसी मोड़ की तलाश थी! मौक़ा लपकते ही मैंने अपना प्रवचन शुरू कर दिया!
"छैला बाबू तुम्हारी शादी नहीं हुई इसलिए तुम कभी-कभार ही रोते हो। मुझसे पूछो! जबस शादी हुई है कितना रोता हूँ? कैसे रोता हूँ? कब-कब रोता हूँ? अपनी ग़लती हो तो आफ़त! पत्नी जी की गलती हो तो और भी बड़ी मुसीबत! सुबह से लेकर शाम तक कितना ही काम कर लो! लेकिन मजाल है कि श्रीमती जी थोड़ी सी भी हौंसला-अफजाई कर दें! हांँ किसी वजह से उनका कहा कोई काम न हो तो सारा घर सिर पर उठा लेती हैं! कोई सामान लाऊँ तो कहती हैँ कि ऐसा ले आए वैसा ले आए! न लाऊँ तो कहेंगी कि कोई सामान नहीं लाते! धर्मपत्नी जी के साथ बाज़ार चले जाओ तो वो हाल हो जाता है कि अगले एक साल तक बाज़ार का नाम सुनकर ही बुखार आने लगता है! बाजार न ले जाओ तो ऐसे कस-कस के ताने मारती हैं कि मन करता है अभी जहर खा लूँ! ऐसा कोई दिन नहीं जाता जिस दिन तबीयत के साथ खट-पट न होती हो! खाना जरूर बना बनाया मिल जाता है! चाय-पानी भी मिल जाता है! लेकिन साथ-साथ अपमान के इतने कड़वे घूँट पीने पड़ते हैं कि दुनिया की कोई चीज़ अब कड़वी कतई न लगती है! कड़वेपन का अहसास ही चला गया है। कम से कम तुम्हें कड़वेपन का अहसास तो हो जाता है! और यह न समझना कि केवल मेरा ही यह हाल है! बहुत सारे शादीशुदा मर्दों का यही हाल है भैया! यह बात और है कि उन्हें ऐसा कोई नहीं मिलता जिसे अपना दुखड़ा सुना सके! कहने को तो अभी और भी बहुत है लेकिन तुम थोड़े को ही बहुत समझना!"
मेरी बातों में छैला बाबू को रस आने लगा था! अथिकतर लोगों की कमज़ोरी होती है कि उन्हें दूसरों के इस प्रकार के दुखों में असीम शांति का अनुभव होता है! छैला बाबू भी ऐसा ही था! मुझे लगा कि मेरी पीड़ा सुनकर छैला बाबू सुख के सागर में गोते लगा रहा था। उसके कलेजे को जबरदस्त ठंडक का अहसास हो रहा था! हालाँकि मुझे उससे कोई शिकायत नहीं थी!
मैंने आगे कहा, "अब तुम अपने आप को ही देख लो। जब मन किया काम कर लिया। मन हुआ तो आराम कर लिया। जैसे चाहो वैसे रहो! जो चाहा वो खा लिया! जब मन किया तब खा लिया! न कोई कहने वाला न सुनने वाला! ऐश ही ऐश हैं! अभी 'छैला बाबू' बन इतराते घूमते हो! शादी हो गई होती तो 'नौकर बीबी का' बन कर ड्यूटी बजा रहे होते! हाँ..कभी-कभी लोग जरूर ताना मारते होंगे कि देखो इसकी तो शादी ही नहीं हो रही है! लेकिन लोगों का क्या? लोग तो वैसे ही किसी को नहीं छोड़ते! शादीशुदा को भी नहीं छोड़ते! इसलिए लोगों को उनके हाल पर छोड़ दो। तुम्हारे जीवन में जो चैन की बंसी बज रही है उसे यूँ ही बजने दो! बल्कि इसका आनंद लेते रहो! और फिर जब वक्त आएगा तो शादी भी हो ही जाएगी! लेकिन जब तक शादी नहीं हो रही है तब तक अविवाहित जीवन का आनंद लेते रहो क्योंकि ये दिन फिर नहीं लौट के आने वाले हैं!"
मेरी बातें सुनकर छैला बाबू की हँसी छूट गई! मैं भी यही चाह रहा था! मौके पर चौका मारते हुए मैंने आगे कहा, "ऐसे ही हंँसा करो! मुँह लटका कर रहोगे तो लोग तुम्हारा नाम 'दुखीराम' या कुछ और रख देंगे! 'छैला बाबू' नाम अच्छा है। 'छैला बाबू' की तरह ही रहा करो! इसी में तुम्हारी भलाई है! जब भी तुम्हे अपने अविवाहित होने का दुख सताए तो फौरन शादीशुदा लोगों की परेशानियों का याद कर लिया करो और जोर का ठहाका लगाया करो! मेरी बातें सुनकर छैला बाबू का चेहरा पूर्णिमा के चाँद की तरह खिल गया।" अचानक मुझे अपनी श्रीमतीजी की याद आ गयी। मैंने फौरन अपना प्रवचन बंद किया और रवानगी डाल दी!
-वीरेंद्र सिंह
रोचकता लिए सराहनीय कथा ।
ReplyDeleteक्या बात है प्रिय वीरेंद्र जी! कथित पोपट लाल बनाम छैला बाबू को जिस तरह से सूत्रधार ने अपनी सच्ची-झूठी पीड़ा से अवगत कराया और उसकी व्यथा को कम किया,अत्यंत सराहनीय है।इस हल्की फुल्की रचना ने दो पल के लिए मुस्कुराने को विवश कर ही दिया।अच्छा लगा पढ़कर।🙂🙂
ReplyDeleteहार्दिक आभार आपके इस बड़प्पन के लिए। कुछ इस तरह की हास्य कहानी लिखने का यह पहला प्रयास था। आपकी उत्साहवर्धन करने वाली टिप्पणी आगे भी इस तरह का प्रयास करने को प्रेरित करेगी। आपका बहुत-बहुत धन्यवाद।
Deleteछैला बाबू के चेहरे पर मुस्कान लाने के लिए जो भी किया है वो रोचक है
ReplyDeleteआपका बहुत-बहुत धन्यवाद ज्योति जी। सादर।
Deleteसभ्य और शालीन प्रतिक्रियाओं का हमेशा स्वागत है। आलोचना करने का आपका अधिकार भी यहाँ सुरक्षित है। आपकी सलाह पर भी विचार किया जाएगा। इस वेबसाइट पर आपको क्या अच्छा या बुरा लगा और क्या पढ़ना चाहते हैं बता सकते हैं। इस वेबसाइट को और बेहतर बनाने के लिए बेहिचक अपने सुझाव दे सकते हैं। आपकी अनमोल प्रतिक्रियाओं के लिए आपको अग्रिम धन्यवाद और शुभकामनाएँ।