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सांकेतिक चित्र |
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आज अतीत के पन्नों से!
मुट्ठी में रेत की मानिंद वक्त गुजर गया,
देखते ही देखते मौसम बदल गया!
एक हमीं वक्त के साथ न चल सके,
बाकी जमाना कितना आगे निगल गया!
(अपने लिए ये पंक्तियां मैंने तकरीबन 12 साल पहले 9 अप्रैल 2010 को ही लिख दीं थी।)
2010 की शुरुआत में ही एक सज्जन ने हमें ब्लॉग शब्द के बारे में समझाया। ब्लॉग कैसे बनाते हैं यह समझाया। और फिर उनके हिसाब से एक ब्लॉग बनाया। जल्द ही अप्रैल के महीने में उस ब्लॉग को डिलीट कर अपने हिसाब से एक और ब्लॉग बनाया और उसका नाम रखा 'आज़ाद परिंदा'। जो लिखना चाहता था उसके हिसाब से यह नाम सही लगता था और अपनी तबीयत भी कुछ इसी तरह की थी। और फिर शुरू हो गया सिलसिला। 'आज़ाद परिंदा' नाम रखने के लिए परम आदरणीय रूपचंद्र शास्त्री जी ने भी आशीर्वाद दिया था। वो कॉमेंट भी कभी लगाऊँगा। ये सब इसलिए बता रहा हूँ कि शुरुआत तो मैंने धमाकेदार की थी। लेकिन बाद में ऐसा भटका कि फिर भटकता ही चला गया! काश वो वक़्त एक बार फिर से आए तो अपनी कुछ ग़लतियों को सुधार लिया जाए!
'इतिहास से अपने ग़लतियों को मिटाया जाए,
काश वो दौर एक बार फिर से लौटाया जाए!'
तब से लेकर आज तक न जाने कितनी बार नाम बदले! ब्लॉग बनाएँ। उन्हें डिएक्टिवेट किया। वर्तमान ब्लॉग में जो प्रोफाइल है वह 2012 में बनाए एक अन्य ब्लॉग का है। बाद में इस ब्लॉग की आईडी हटाकर 2012 वाले ब्लॉग की आईडी से इस ब्लॉग को जोड़ दिया। जिसके चलते मेरे प्रोफाइल में ब्लॉग की शुरुआत 2010 की बजाय 2012 आती है।
'आज़ाद परिंदा' के विवरण में एक शेर लिखा था:-
'अपने सपनों की उड़ान देखकर हो जाता हूँ खुद ही शर्मिंदा,
चूमना चाहता हूँ आसमां के दामन को बनकर आज़ाद परिंदा'।
(इस शेर के लिए अलग से दाद मिला करती थी जिससे प्रेरणा लेकर कुछ बेहतर रचा जा सकता था लेकिन ऐसा हो न सका।)
उस दौरान क्या लिखा करता था आप भी पढ़िए!
1- 08.04.2010 को प्रकाशित
ज़िंदगी भी अजब रंग दिखाती है,
कदम-कदम पर इंसान को आजमाती है।
कभी मिलती है ख़ुशी तो कभी ग़म,
कभी हिस्से में मायूसी भी आती है!
2- 09.04.2010 को प्रकाशित
मुठ्ठी में बंद रेत की मानिंद वक्त निकल गया,
देखते ही देखते मौसम बदल गया।
एक हमीं वक़्त के साथ न चल सके,
बाकी जमाना कितना आगे निकल गया!
जुदाई में ज़िंदगी बड़ी तन्हा होती है,
दिल रोता है, आँखों में नींद नहीं होती है।
कहने को ही बीच में दूरियाँ होती हैं दोस्त,
उन यादों का क्या जो हर पल साथ होती है।
4- 21.04.2010 को प्रकाशित
जुबाँ लड़खड़ाती है,
होंठ कंपकपांते हैं।
आई लव यू कहने में,
अच्छे-अच्छों के पसीने छूट जाते हैं।
5- 21.04.2010 को प्रकाशित
मैं तुझे जानता हूँ, मैं तुझे मानता हूँ,
तेरे दिल में थोड़ी जगह माँगता हूँ।
तेरा बुत बनाकर तेरी पूजा करूँगा,
मैं तुझको अपना रब मानता हूँ।
6- 22.04.2010 को प्रकाशित
मैं जब भी अपने रब को याद करता हूँ
सलामत रहे यार अपना यही फरियाद करता हूँ!
7- 01.05.2010 को प्रकाशित
हर युवा में वो चिंगारी है जो आग लगा सकती है,
वक्त पर इसे दे दो हवा, वरना ये बुझ भी सकती है।
(अर्थ- वक़्त पर युवाओं का प्रतिभा का इस्तेमाल होना चाहिए
वरना उसकी प्रतिभा जाया हो सकती है)
8- 01.05.2010 को प्रकाशित
न शिकवा, न शिकायत, न कोई गिला
हम उसी के हो लिए जो भी प्यार से मिला।
9- 01.05.2010 को प्रकाशित
आँखों में नमी, चेहरे पर उदासी,
दामन में वफ़ा का दाग़ है!
पल-पल जला रही है मुझे,
मेरी ज़िंदगी में लगी वो आग है!
(नोट- ये रही वे पंक्तियाँ जिन्हें पढ़कर लोगों को लगा कि अब इसका हौंसला बढ़ाना चाहिए।)
10- 06.05.2010 को प्रकाशित पंक्तियाँ
मिटा दो नफ़रतों को दिलों से,
ये इंसानियत का लहू माँगती है!
बहा दो प्यार की गंगा दोस्तों,
जिसमें हर बुराई पनाह माँगती है।
11. 06.05.2010 को प्रकाशित
अच्छा नहीं गुरूर कभी, ये शीशे की तरह टूट जाता है,
मत करना ये गुनाह कभी, जो हमेशा लानत ही लाता है।
12- 07.05.2010 को प्रकाशित
देखकर दुनिया के रंग-ढंग, मेरा दिल धड़कता है,
मैं वो रंगबाज़ नहीं जो मौक़ा देखकर रंग बदलता है।
इस पोस्ट पर आया सूफी आशीष का जवाब भी लाजवाब है। (नीचे कॉमेंट बॉक्स में)
13- 10.05.2010 को प्रकाशित
अब होश में आने की बात न करो,
बस ताउम्र तेरी नज़रों से पीना है।
आँखें तो सिर्फ़ तुम्हारे लिए हैं,
हमारे लिए तो मयखाना है।
14- 12.05.2010 को प्रकाशित
एक तुम्हारे सिवा इस दुनिया में क्या रखा है,
कुछ यादें हैं जिन्हें सीने में दबा रखा है।
हम तो कब का छोड़ जाते इस जहाँ को
बस तुमसे मिलने की आस ने ज़िंदा रखा है।
15- 12.05.2010 को प्रकाशित
यूँ भटकना मेरी ज़िंदगी का मक्सद न था,
क़िस्मत में ही लिखा था वरना तुमसे मोहब्बत न करते!
16- 12.05.2010 को प्रकाशित
हर पल मेरी ज़िंदगी में तन्हाई का राज है,
मेरा क़ातिल है तेरा ये हुस्न जिस पर तुझे इतना नाज़ है।
17- 21.05.2010 को प्रकाशित
अगर दे दूँ तेरी बे-वफ़ाई के क़िस्सों को आवाज़
मुमकिन है कि इश्क फिर न करेगा कभी हुस्न पर नाज़!
18- 25.05.2010 को प्रकाशित
जो कभी बुझती ही नहीं, लगी है ऐसी प्यास,
शायद मेरे दिल को अब भी है तेरे आने की आस।
19- 21.06.2010 को प्रकाशित
हर पल मेरी आँखों में तेरा चेहरा होता है,
बस एक तेरे लिए ही मेरा दिल रोता है।
अब किसी और को भी इसमें बिठाऊं कैसे?
जब हर वक़्त तेरी यादों को पहरा होता है।
20- 22.06.2010 को प्रकाशित
ऐसे मेरे दिल में झाँकने की कोशिश न करो साईं
वरना पूछोगे कि मेरे दिल में तुम्हारी तस्वीर कहाँ से आई?
ब्लॉगिंग की शुरुआत कुछ इस तरह से की थी। जल्दी ही साथी ब्लॉगर अपने आप ही उत्साहवर्धन करने आने लगे। इन पंक्तियों को यहाँ लिखते वक्त इनमें हुई व्याकरण की अशुद्ध्यों को यथासंभव हटा दिया गया है। उस वक़्त तो काफ़ी ग़लतियाँ हुआ करती थी। लेकिन बड़े-बड़े ब्लॉगरों ने हमेशा हौंसलाअफजाई ही की। उनको लगता होगा कि नए-नए लोग जब दूसरों को पढ़ेंगे तो अपने-अपने आप सीख जाएँगे। आज भी जब इन पंक्तियों को पढ़ता हूँ तो अनायास ही उन ब्लॉगरों की याद आ जाती है जो उस वक्त हौंसला बढ़ाया करता थे। देखा जाए तो कितना अहसान है उन सभी ब्लॉगरों का जो अंजान ब्लॉगरों का हौंसला बढ़ाने और उनकी हर तरह की ग़लतियाँ माफ कर उनकी पोस्ट की तारीफ कर जाते। बड़े-बड़े व्यंग्यकार और कवि भी टिप्पणी करके जाते। संतोष की बात यह है कि वरिष्ठ और प्रतिष्ठत ब्लॉगर आज भी ऐसे ही नए लोगों का उत्साहवर्धन करते हैं। हिंदी ब्लॉगजगत की यह रीत नये-नये ब्लॉगरों के लिए संजीवनी का काम करती है। यह रीत कहती है कि आप जो भी हैं जैसे भी लिखते हैं! लिख जाइये। हम हैं पढ़ने और बढ़ाबा देने के लिए। ग़लतियों की चिंता तुम मत करो। वक़्त तुम्हें सबकुछ सिखा देगा।
आज मैं उन सभी ब्लॉगर साथियों का हृदय से अभिनंदन करता हूँ जो तमाम कमियों के बावजूद उस वक्त मेरा लिखा पढ़ते और उसे सराहते। आपकी उस विनम्रता ने आज भी मुझे ब्लॉग जगत से जोड़े रखा है। ब्लॉग लिखते रहने का साहस दिया है। आपका बहुत-बहुत धन्यवाद।
-वीरेंद्र सिंह
दामन में वफ़ा का दाग़ वाली पंक्तियों पर ....
ReplyDeleteरजत यादव ने लिखा था, ठन्डे-ठन्डे पानी से.......... :) हिन्दी ब्लॉगजगत के स्नेही परिवार में इस नये ब्लॉग का और आपका मैं ई-गुरु राजीव हार्दिक स्वागत करता हूँ.मेरी इच्छा है कि आपका यह ब्लॉग सफलता की नई-नई ऊँचाइयों को छुए. यह ब्लॉग प्रेरणादायी और लोकप्रिय बने.यदि कोई सहायता चाहिए तो खुलकर पूछें यहाँ सभी आपकी सहायता के लिए तैयार हैं.
शुभकामनाएं !स"टेक टब" - ( आओ सीखें ब्लॉग बनाना, सजाना और ब्लॉग से कमाना )
2-शशांक शुक्ला ने लिखा था: बढिया है।
ReplyDelete3-अजय कुमार
May 3, 2010 at 7:07 AM
हिंदी ब्लाग लेखन के लिए स्वागत और बधाई
कृपया अन्य ब्लॉगों को भी पढें और अपनी बहुमूल्य टिप्पणियां देनें का कष्ट करें
4-Dr. Purushottam Meena 'Nirankush'-Editor-PRESSPALIKA
May 3, 2010 at 9:02 PM
शानदार-डॉ. पुरुषोत्तम मीणा 'निरंकुश'
5-Anonymous
May 4, 2010 at 5:47 PM
wah!
6- Dimple Maheshwari
May 8, 2010 at 8:34 AM
जय श्री कृष्ण...आपके ब्लॉग पर आ कर बहुत अच्छा लगा...बहुत अच्छा लिखा हैं आपने.....भावपूर्ण...सार्थकReplyDelete
7- Jayram Viplav
May 11, 2010 at 7:00 PM
" बाज़ार के बिस्तर पर स्खलित ज्ञान कभी क्रांति का जनक नहीं हो सकता "
हिंदी चिट्ठाकारी की सरस और रहस्यमई दुनिया में राज-समाज और जन की आवाज "जनोक्ति.कॉम "आपके इस सुन्दर चिट्ठे का स्वागत करता है . चिट्ठे की सार्थकता को बनाये रखें . अपने राजनैतिक , सामाजिक , आर्थिक , सांस्कृतिक और मीडिया से जुडे आलेख , कविता , कहानियां , व्यंग आदि जनोक्ति पर पोस्ट करने के लिए नीचे दिए गये लिंक पर जाकर रजिस्टर करें . http://www.janokti.com/wp-login.php?action=register,
साथ हीं जनोक्ति द्वारा संचालित एग्रीगेटर " ब्लॉग समाचार " http://janokti.feedcluster.com/ से भी अपने ब्लॉग को अवश्य जोड़ें .ReplyDelete
8- Dev
May 12, 2010 at 8:50 PM
Its awesome... really its very nice...
Lines Tells the Story of Your Life...Read Dev Palmistry....
9-संजय भास्कर
August 15, 2010 at 2:03 PM
बहुत खूब, लाजबाब !
ये सभी कॉमेंट 'दामन में वफ़ा का दाग़' पर मिली थी।
Delete'ज़िंदगी भी अजब रंग दिखाती है' पर संजय जी लिखे थे...
ReplyDeleteसंजय भास्कर
August 15, 2010 at 1:58 PM
शेर लाजवाब और बेमिसाल ..
'मुट्ठी में बंद रेत की भांति वक्त गुजर गया' पर
Anonymous
April 17, 2010 at 3:43 PM
Very Good.
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'मैं वो रंगबाज नहीं वाले' पर ...
ReplyDeleteसूफ़ी आशीष/ ਸੂਫ਼ੀ ਆਸ਼ੀਸ਼
May 11, 2010 at 8:44 PM
रंग बदलने पर अर्ज़ है....
देखा नहीं कभी गौर से, तूने मुझे ऐ रफीक!
आज जब देखा है तो, तू क्यूँ इतना दंग है?
कल जिसमे भीगा था मैं, वो भी मेरा एक रंग था!
आज जिसमे डूबा हूँ मैं, वो भी मेरा एक रंग है!
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'एक तुम्हारे सिवा इस दुनिया में क्या रखा है' पर
ReplyDeleteAnonymous
May 12, 2010 at 2:58 PM
hmm....
sirf tumse milne ki aas ne zinda rakha hai...
bahut khub...
thankx for visiting and commenting on my blog.......
...............................................................................
'वरना तुमसे मोहब्बत न करते" पर
ReplyDeleteRa
May 12, 2010 at 5:32 PM
do sundar panktiyaa .....dhnyavaad
http://athaah.blogspot.com/
'मेरा क़ातिल है तेरा हुस्न' पर
ReplyDelete1-Anonymous
May 13, 2010 at 11:47 AM
waah..
kya baat hai......
regards..
http://i555.blogspot.com/ReplyDelete
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SURYA
September 24, 2010 at 9:20 PM
SIR KYA LIKH DIYA......DIL KO CHU GAYI LAINE...
'मुमकिन है फिर इश्क न करेगा कभी हुस्न पर नाज' पर
ReplyDeleteSaumya
May 24, 2010 at 8:05 PM
too good!!!ReplyDelete
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संजय भास्कर
August 15, 2010 at 2:12 PM
एहसास की यह अभिव्यक्ति बहुत खूबReplyDelete
संजय भास्कर
August 15, 2010 at 2:14 PM
lajwaab......
'मेरे दिल में झाँकने की कोशिश न करो' पर
ReplyDelete1-वीना श्रीवास्तव
June 22, 2010 at 6:42 PM
क्या बात है...ReplyDelete
2-Saumya
June 23, 2010 at 6:30 PM
nice thought!ReplyDelete
3-Himanshu Mohan
July 4, 2010 at 11:47 PM
ख़तरा हैt ओ चेतावनी देना ज़रूरी है, मगर ये तो सूचना हुई जनाब!
;)ReplyDelete
4-संजय भास्कर
August 15, 2010 at 2:06 PM
... बेहद प्रभावशाली अभिव्यक्ति है ।ReplyDelete
'हर वक्त तेरी यादों का पहरा होता' पर
ReplyDelete1-vandan gupta
June 21, 2010 at 4:45 PM
बहुत खूब्।ReplyDelete
2-Saumya
June 23, 2010 at 6:30 PM
wow...good one!ReplyDelete
3-Himanshu Mohan
July 4, 2010 at 11:45 PM
बहुत ख़ूब कहा - वाह!
'जो कभी बुझती ही नहीं लगी है ऐसी प्यास' पर-
ReplyDelete1-Ra
May 25, 2010 at 11:55 PM
sundar ....achha likha hai ise hi umeed kahte hai ....meri nayi rachna par apne amulya sujhaav de
http://athaah.blogspot.com/ReplyDelete
2-संजय भास्कर
June 2, 2010 at 5:59 PM
क्या आशिकाना अंदाज़ है ........ बहुत खूब .......ReplyDelete
3-संजय भास्कर
June 2, 2010 at 5:59 PM
मेरे ब्लोग मे आपका स्वागत है
क्या गरीब अब अपनी बेटी की शादी कर पायेगा ....!
http://sanjaybhaskar.blogspot.com/2010/05/blog-post_6458.html
आप अपनी अनमोल प्रतिक्रियाओं से प्रोत्साहित कर हौसला बढाईयेगा
सादर ।ReplyDelete
वो दौर तो बदल गया , लेकिन सच है कि ब्लॉगर्स को बढ़ावा बहुत मिलता था ।
ReplyDeleteआदरणीय संगीता जी आपका बहुत-बहुत धन्यवाद और आभार।
Deleteआदरणीय रूपचंद्रशास्ती 'मयंक' जी ब्लॉग पर आपका बहुत-बहुत स्वागत है! आपकी टिप्पणी हमेशा की तरह मनोबल बढ़ाती है। आपके आशीर्वाद से मेरे जैसे ब्लॉगरों को निरंतर प्रेरणा मिलती है। आपका हार्दिक आभार सर।
Deleteसभी शेर और अस्आर बेहतरीन/शानदार।
ReplyDeleteएक अलग तरह का आकर्षक ब्लॉग।
साधुवाद।
सभ्य और शालीन प्रतिक्रियाओं का हमेशा स्वागत है। आलोचना करने का आपका अधिकार भी यहाँ सुरक्षित है। आपकी सलाह पर भी विचार किया जाएगा। इस वेबसाइट पर आपको क्या अच्छा या बुरा लगा और क्या पढ़ना चाहते हैं बता सकते हैं। इस वेबसाइट को और बेहतर बनाने के लिए बेहिचक अपने सुझाव दे सकते हैं। आपकी अनमोल प्रतिक्रियाओं के लिए आपको अग्रिम धन्यवाद और शुभकामनाएँ।