चुनावी वादे कितने हसीन होते हैं ना! एकदम अपनी मनपसंद हीरोइन की तरह! एक हसीन ख्वाव की तरह! पर न तो मनपंसद हीरोइन अपनी होती है और न ही हसीन ख्बाव कभी सच होते हैं! चुनावी वादे भी बस वादे ही होते हैं। अगर ये सच हुआ करते तो अपने देश और देशवासियों की काया ऐसे ही पलट गयी होती जैसे एमएलए और एमपी बनने के बाद नेताओं की काया पलट हो जाती है! एकदम टी-20 खेल के उस खिलाड़ी के माफिक जो 20 गेंदों पर 80 रन बनाकर नाबाद हो! चूँकि जनता से किए वादे नेता लोग पूरे नहीं करते इसलिए जनता की काया पलटने की गति टेस्ट मैच के उस खिलाड़ी से भी कम होती है जो 100 गेंदों पर 1 रन बनाकर खेल रहा है!
अब लाख टके का सवाल उठता है कि जब नेता लोग अपने वादे पूरे करते ही नहीं हैं तो जनता इनके झांसे में आ कैसे जाती है? कहावत है कि जहाँ लालच और मूर्खता हो वहां ठग भूखे नहीं मरते! बस सारा रहस्य इसी एक वाक्य में छुपा है। सवाल उठता है कि क्या सारी जनता लालची और मूर्ख है। उत्तर है नहीं। लेकिन जो नेता रूपी 'ठग' हैं वे अत्यधिक कुशल हैं और अपने कौशल के दम पर जनता को मूर्ख और लालची बना देते हैं! इन 'ठगों' की चतुराई से जनता अक्सर हार जाती है। सच बोलने से इनकी दुश्मनी है! ये 'ठग' नेता पल-पल में रंग बदलते हैं! रंग बदलने की इनकी गति देखकर तो गिरगिट भी अपने साथियों को इनका उदाहरण देकर समझाते हैं कि फलां नेता से सीखों रंग कैसे और कितनी तेजी से रंग बदला जाता है! यूँ समझ लो कि नेताओं ने जब से रंग बदलना शुरू किया है तब से गिरगिटों की दुनिया में भूचाल आ गया है! उन्हें समझ ही नहीं आ रहा कि हमसे कहाँ चूक हो रही है कि इंसान हमसे भी तेज रंग बदलने लगे हैं!
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भगवान बचाए ऐसे नेताओं से! |
ये 'ठग' शर्तों वाले वादे करते हैं। लेकिन उन शर्तों का खुलासा चुनाव जीतने के वाद करते हैं! बाजार से जब आप कोई उपकरण खरीदते हैं तो उसके साथ कुछ गारंटी या वारंटी मिलती है और साथ में कुछ टर्म्स एंड कंडीशन्स भी होती हैं कि भैया अगर आपने इन बातों का ख्याल नहीं रखा तो गारंटी-वारंटी को वैसे ही भूल जाना जैसे लोग अपना कर्ज लौटाना भूल जाते हैं! यही बात होती है नेताओं के चुनाव पूर्व वादों में। इन वादों के साथ जो शर्तें लगी होती हैं 'ठग' नेता बड़ी चालाकी उन्हें छुपा लेते हैं। और जब जनता की गलती से सत्ता में आ जाते हैं तो चुनाव पूर्व वादों की टर्म्स और कंडीशंस सामने आ जाती हैं!
केवल चुनाव के दौरान किए वादों से ही नहीं मुकरा जाता है। चुनाव बाद किए गए वादों-इरादों को भी अगले ही दिन भुला दिए जाता है! याद कीजिए कि पराजित दल कितनी मासूमियत से कहते हैं कि वो दिल से जनता के फैसले को मानेगें, विपक्ष में रहकर नयी सरकार को पूरा सहयोग देगें, लोगों से जुड़े मुद्दे उठाते रहेगें और जनता के फैसले का सम्मान करेगें वगैरा-वगैरा। लेकिन करते क्या हैं? वे बदला लेते हैं! जनता से भी और जिसको वोट दिया उससे भी! वे जनता के हित के नाम पर सदन ही नहीं चलने देते! सदन में बहस की बजाय वॉकआउट करेगें! विपक्ष का रवैया उस बच्चे के समान होता है जिसे कोई जरा सा छेड़ दे तो सारा घर सिर पर उठा लेता है! ऐसे रवैये वाले विपक्ष को शांत रखने में उतनी ही सफलता मिलती है जितनी कुत्ते की दुम को सीधा करने में! बदला लेने लिए वे आंदोलन करेगें, जुलूस निकालेगें! सड़क जाम कर जनता को इस बात की याद दिलाएंगे कि तुमने हमें वोट न देकर कितना बड़ा गुनाह कर लिया! एक तरह से अपना बेड़ा गर्क कर लिया है! और यह तब तक चलता रहता है जब तक जनता अपनी गलती न मान ले कि आप को वोट न देकर हमने अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मार ली!
सादर नमस्कार ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (6-9-22} को "गुरु देते जीवन संवार"(चर्चा अंक-4544) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है,आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी।
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कामिनी सिन्हा
आदरणीय कामिनी जी, आपका बहुत-बहुत आभार। धन्यवाद।
Deleteवादा जो कभी न पूरा हो,इसे आपने इस लेख में कितनी कुशलता से चित्रित किया है। बेहतरीन रचना आदरणीय
ReplyDeleteआपका बहुत-बहुत धन्यवाद अभिलाषा जी। आभार।
Deleteजनता का लालच सबसे बड़ा कारक है जो झूठे वादे पर हर बार फंसकर , गलत लोगों का चयन कर लेती है और ऐसा हर बार होता हैं। यथार्थ को प्रस्तुत करती सुन्दर प्रस्तुति आदरणीय ।
ReplyDeleteसभ्य और शालीन प्रतिक्रियाओं का हमेशा स्वागत है। आलोचना करने का आपका अधिकार भी यहाँ सुरक्षित है। आपकी सलाह पर भी विचार किया जाएगा। इस वेबसाइट पर आपको क्या अच्छा या बुरा लगा और क्या पढ़ना चाहते हैं बता सकते हैं। इस वेबसाइट को और बेहतर बनाने के लिए बेहिचक अपने सुझाव दे सकते हैं। आपकी अनमोल प्रतिक्रियाओं के लिए आपको अग्रिम धन्यवाद और शुभकामनाएँ।